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Thursday 9 June 2011

http://www.youtube.com/user/DoorDarpan?feature=mhee

10 वर्ष से वर्तमान (व्यावसायिक) मीडिया का सार्थक विकल्प "युगदर्पण" तथा 1 वर्ष से अंतरताने पर अपनी विशिष्ट पहचान के पश्चात् अब टी वी चैनल की ओर कूच करते हुए U-tube पर युगदर्पण मीडिया समूह की प्रस्तुति U-tube चैनल DoorDarpan.http://www.youtube.com/user/DoorDarpan?feature=mhee . तिलक संपादक युग दर्पण
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देश की श्रेष्ठ प्रतिभा,प्रबंधन पर राजनिति के ग्रहण की परिणति दर्शाने का प्रयास !

Thursday 28 April 2011

तकनिकी श्रेष्ठता प्रोत्साहन (रु 1 लाख )

Kabhi hamara gyan vigyan utkrushth raha hai, jisne hamein Vishva Guru banaya tha. Fir usey grahan lagne se andhkar ho gaya, ab svatantrata ke bad hamare yuvaa apni pratibha se gyan vigyan ke shikhar ko chhune ki pratibha v kshamta rakte hain yah dikha rahe hain.
Takniki shreshthta ko puraskrut (Rs 1 lakh) kar protsahan v usey vyavsayik roop dene mein sahyog dvara svavlamban pradan karne ki FICCI ki niti mein Takniki vikas ke jin avishkaron ko isbar puraskrut kiya gaya aise 30 yuva avishkaron mein Chikitsa upkaran, krushi, Raksha, Banking, urjaa bhi hai.
Takniki panjiyan sankhya, sahit unke naam diye ja rahe hain kai apne Gyan ko apke samaksh yahan dene ko sahmat ho gaye hain shesh bhi bad mein jud jayenge. Aise anubhavon ki shrunkhala arambh ho rahi hai.
2163-Dr.Shyam Vasudeva Rao, 3netra;. 1746-sh Santosh Ostwal, Nano Ganesh; 1730-Dr. Padma S Vankar, 2223-Prachi Raj, 1759-Jay Krishnan, 1958-Nelvin Joseph, 1980-Abhishek Sinha, 1760-Balbir Onkar Singh, 1567-Dr. Manu Chaudhary, 2012-Mrinmayee Bhushan, 1769-Sundar Raman, 1405-Aninda Sircar, 1532-Gurudatt Shenoy, 1701-Praveen S. jambholkar, 1564-Ladkat Rajendra Vithal, 2097-Vishal Shah, 2218-Ajith Kumar P T, 2037-Altaf A Tinwala, 1495-S Uma Mahesh, 1649-Pushpendra Awadhiya, 2189-Arijit Dutta, 2053-Hitesh Mehta, 1447-Aniruddha R Gupte, 1456-Dr. Rajshri Banerjee, 1637-Dr. Shamrez Ali M, 1865-Ashish Anand, 1658-Sharath Chandar, 1663- Vaibhav Tidke, 1509-Mayank Pareek, 1974-Sarabjeet Singh Johar.

कभी हमारा ज्ञान विज्ञानं उत्कृष्ट रहा है, जिसने हमें विश्व गुरु बनाया था. फिर उसे ग्रहण लगने से अंधकार हो गया, अब स्वतंत्रता के बाद हमारे युवा अपनी प्रतिभा से ज्ञान विज्ञानं के शिखर को छूने की प्रतिभा व क्षमता रखते हैं यह दिखा रहे हैं.
तकनिकी श्रेष्ठता को पुरस्कृत (रु 1 लाख ) कर प्रोत्साहन व उसे व्यावसायिक रूप देने में सहयोग द्वारा स्वावलंबन प्रदान करने की फिक्की की निति में तकनिकी विकास के जिन अविष्कारों को इसबार पुरस्कृत किया गया ऐसे 30 युवा अविष्कारों में चिकित्सा उपकरण, कृषि, रक्षा, बैंकिंग, ऊर्जा भी है.तकनिकी पंजीयन संख्या, सहित उनके नाम दिए जा रहे हैं कई अपने ज्ञान को आपके समक्ष यहाँ देने को सहमत हो गए हैं शेष भी बाद में जुड़ जायेंगे. ऐसे अनुभवों की शृंखला आरंभ हो रही है.
2163-डॉ.श्याम वासुदेव राव, 3 नेत्र;. 1746-श्री संतोष ओसवाल, नेनो गणेश; 1730-डॉ. पद्मा स वानकर, 2223-प्राची राज, 1759-जय कृष्णन, 1958-नेल्विन जोसेफ, 1980-अभिषेक सिन्हा, 1760-बलबीर ओंकार सिंह, 1567-डॉ. मनु चौधरी, 2012-मृण्मयी भूषण, 1769-सुन्दर रमण, 1405-अनिन्दा सिरकार, 1532-गुरुदत्त शेनॉय, 1701-प्रवीण स. जम्भोलकर, 1564-लड्कत राजेंद्र विठल, 2097-विशाल शाह, 2218-अजित कुमार प टी, 2037-अल्ताफ अ तिन्वाला, 1495-स उमा महेश, 1649-पुष्पेन्द्र अवधिया, 2189-अरिजीत दुत्ता, 2053-हितेश मेहता,  1447-अनिरुद्ध र गुप्ते, 1456-डॉ. राजश्री बनर्जी, 1637-डॉ. शम्रेज़ अली म, 1865-आशीष आनंद, 1658-शरथ चंदर, 1663- वैभव तिडके, 1509-मयंक पारीक, 1974-सरबजीत सिंह जोहर.
देश की श्रेष्ठ प्रतिभा,प्रबंधन पर राजनिति के ग्रहण की परिणति दर्शाने का प्रयास !

Saturday 9 April 2011

"हम सफल हुए"- अन्ना का व्रत और जन शक्ति से हारी सरकार

"हम सफल हुए"- अन्ना का व्रत और जन शक्ति से हारी सरकार 
अंत में, लोकपाल विधेयक पर प्रस्तावित विधेयक के प्रारूप के विरोध व अन्नाहजारे सहित देश भर में हजारों लोगों के लगभग 4 दिनों के व्रत के बाद बनी सहमती की जीत से उत्साहित पूरा देश एक साथ उत्सव मना रहा है! अभी एक सप्ताह भी नहीं हुआ जब यह सब असंभव सा लग रहा था. नई दिल्ली के जंतर मंतर में, जहां अन्ना के समर्थक, विरोध प्रदर्शन हेतु एकत्र हुए हैंसमारोह स्थल बन गया है! 
हजारे ने कहा.", सरकार ने हमारी सभी मांगों को स्वीकार कर लिया है और मैं कल प्रात:10:30 बजे मेरा व्रत तोड़ दूंगा यह इस पूरे राष्ट्र के लिए एक जीत है." 
हुर्रे है ! जिस घोषणा के लिए पूरा भारत प्रतीक्षा कर रहा था ......." पूरा हो गया है "जनलोकपाल विधेयक," सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया; अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों को बधाई ....... और धन्यवाद ... ... भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष हेतु सभी भारतीयों को एक साथ लाने और प्रेरित करने के लिए ....... :)
यह जीत विश्व कप से भी बड़ी है क्योंकि यह हमारे और हमारे भविष्य हेतु है; तो ......चलो इस जीत को, जो जश्न हर विश्व कप जीतने के बाद किया था उससे भी अधिक गर्व से और तीव्रता से मना ...... ... ... :)
बताया गया है कि विधेयक हेतु 10 सदस्यों की समिति में 5 सरकारी व अन्य 5 में अन्ना हजारे, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, संतोष हेगड़े तथा अरविन्द केजरीवाल होंगे ! दोनों ओर का एक एक अध्यक्ष होगा ! संतोष जनक यह है कि इनमें स्वामी अग्निवेश का कोई स्थान नहीं है ! आज अन्ना हजारे की संगत में रह कर स्वामी अग्निवेश ने भी "भारत माता की जय" और "वन्दे मातरम" का नारा लगाया !

भारत के भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना हजारे की भूख हड़ताल समाप्त 

Anna Hazare gestures during his hunger strike in Delhi, Friday, April 8, 2011अन्ना हजारे ने कहा उनकी जीत भारत की जनता की जीत है  

भारतीय भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता अन्ना हजारे की जंतर मंतर पर 96 घंटे की भूख हड़ताल, अपनी सभी मांगों के लिए मंत्रियों की सहमति व्यक्त होने के बाद, निम्बू -जल पीकर समाप्त हो गयी है!
72 वर्षीय प्रचारक कठिन भ्रष्टाचार निरोधक कानून के लिए जोर दे रहा है, और भारी जन समर्थन प्राप्त किया है. हजारे के समर्थन में हजारों जुटे !
उनकी मांग कि नए कानून का प्रारूप बनाने की समिति के गठन में नेताओं के साथ सामाजिक कार्यकर्ताओं का सामान संख्या में होना तथा अध्यक्ष भी सरकारी के साथ एक गैर सरकारी होना, सरकार ने स्वीकार किया! सोनिया गाँधी सहित वरिष्ठ कांग्रेस जनों के आग्रह के बाद भी अपनी मांग पर स्थिर अन्ना सरकार को झुकाने में सफल हुए!
विगत महीनों में देश को भ्रष्टाचार घोटालों की कतार ने हिलाकर रख दिया है

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भारत में अहिंसक आन्दोलन का प्रतीक उपवास से बड़ा कोई नहीं




एक पूर्व दूरसंचार मंत्री टेलीकॉम लाइसेंसों की धोखाधड़ी की बिक्री से करोड़ों डॉलर के वसूलने का आरोप होने के बाद से परीक्षण के घेरे में है.और देशवासी दंग रह गए जब आरोपों में उभरा है कि युद्ध विधवाओं के लिए मुंबई में मकान वास्तव में सरकारी कर्मियों को दिए गए थे.
गत माह देश के भ्रष्टाचार विरोधी निगरानी के सिरमोर को स्वयं भ्रष्टाचार के आरोप होने के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने त्यागपत्र देने को बाध्य किया था. संवाददाताओं का कहना घोटालों की हाल ही में बाढ़ से मोहभंग हुए देश भर में लोगों को श्री हजारे ने लामबंद किया है - वह एक अत्यधिक स्वच्छ छवि के एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित है.
Supporters of Anna Hazare attend a candlelight protest march against corruption in front of India Gate in Delhi April 7, 2011
हजारे के समर्थन में देश भर में हजारों जुटे
पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण
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Sunday 3 April 2011

नव संवत 2068 की शुभकामनाएं।

अंग्रेजी का नव वर्ष भले हो मनाया,
उमंग उत्साह चाहे हो जितना दिखाया;
विक्रमी संवत बढ़ चढ़ के मनाएं,
चैत्र के नवरात्रे जब जब आयें
घर घर सजाएँ उमंग के दीपक जलाएं;
खुशियों से ब्रहमांड तक को महकाएं
यह केवल एक कैलेंडर नहीं, प्रकृति से सम्बन्ध है;
इसी दिन हुआ सृष्टि का आरंभ है
तदनुसार 4 अप्रैल 2011, इस धरा की 1955885112वीं वर्षगांठ तथा इसी दिन सृष्टि का शुभारंभ हुआ.आज के दिन का महात्य -

1.भगवन राम का राज्याभिषेक. 2.युधिस्ठिर संबत की शुरूवात.3 .बिक्रमादित्य का दिग्विजय. 4.बासंतिक नवरात्र की शुरूवात.5 .शिवाजी महाराज की राज्याभिषेक.6 .राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवर जी का जन्मदिन. 
ईश्वर हम सबको ऐसी इच्छा शक्ति प्रदान करे जिससे हम अखंड माँ भारती को जगदम्बा का स्वरुप प्रदान करे, धरती मां पर छाये वैश्विक ताप रुपी दानव को परास्त करे... और सनातन धर्म का कल्याण हो..
युगदर्पण परिवार की ओर से अखिल विश्व में फैले हिन्दू समाज सहित,चरअचर सभी के लिए गुडी पडवा, उगादी,
नव संवत 2068 की शुभकामनाएं
जय भबानी ,जय श्री राम,भारत माता की जय.
तिलक संपादक युगदर्पण. .
(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें संपर्कसूत्र-09911111611,9911145678,9540007993. www.deshkimitti.feedcluster.com/ http://www.deshkimitti.blogspot.com/
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Wednesday 30 March 2011

भारत की पाकिस्तान से भिडंत


जीत पर देशभर में हुई आतिशबाजी 
मोहाली/नई दिल्ली/भोपाल/जयपुर। भारत की पाकिस्तान के विरुद्ध विश्वकप के दूसरे सेमीफाइनल में भव्य जीत पर देशभर के क्रिकेटप्रेमी मस्ती से झूम उठे। जीत का शंखनाद होते ही पूरे देश में आतिशबाजी से आसमान जगमगा उठा। भारत ने पाकिस्तान के 
विरुद्ध 29 रन की जीत में जैसे ही अंतिम विकेट चटकाया मोहाली और दिल्ली सहित देश के सभी भागों में उत्सव सा शुरू हो गया। लोगों ने एकदूसरे को बधाईयां दे डाली और आतिशबाजी की गूंज से आकाश गुंजायमान हो उठा।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी मोहाली के पीसीए स्टेडियम में 
साथ-साथ बैठे यह मैच देख रहे थे। जैसे ही भारत की जीत सुनिश्चित हुई मनमोहन धीरे-धीरे तालियां बजाने लगे जबकि गिलानी निराश हो गए। उनके समक्ष भारत के सपूतों ने जो धुलाई की देशवासी प्रसन्नता से झूम उठे।
क्रिकेट के मैदान में ऎसी शानदार जीत और वह भी विश्वकप में बार-बार नहीं मिलती। मैच रोमांचक हो चला था किन्तु जैसे ही पाकिस्तान के कप्तान शाहिद आफरीदी आउट हुए भारत के विभिन्न भागों में जश्न का दौर शुरू हो गया।राजधानी दिल्ली, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल, राजस्थान की राजधानी जयपुर और देश के अन्य भागों में युवा वर्ग भारत के मैच जीतने के साथ ही सड़कों पर बाहर निकल आया और जीत का उत्सव मनाया। 
वैसे तो यह खेल मैं पसंद नहीं करता, किन्तु भारत की पाकिस्तान से भिडंत और ऐसी विजय की बात हो तो बल्ले बल्ले, बहुत बहुत बधाई!
बस एक कष्ट है, सुना है भारत में बन रहे विजय के इस जनून की परिणति को देखते हुए, इसका लाभ उठाने हेतु दाऊद ने सट्टा लगा कर लक्ष्मी विजय की योजना बनाई है, जिससे आतंकियों को साधन मिल सकें!
इस घातक स्थिति पर, तभी किसी ने कहा है "इंडिया जीतेगा भारत हारेगा" -तिलक संपादक युग दर्पण 09911111611

देश की श्रेष्ठ प्रतिभा,प्रबंधन पर राजनिति के ग्रहण की परिणति दर्शाने का प्रयास !

Wednesday 9 March 2011

ICSE calls Shahid Bhagat Singh ‘terrorist’, court objects to it

ICSE calls Shahid Bhagat Singh ‘terrorist’, court objects to it
A Delhi court has directed Indian Certificate of Secondary Education (ICSE) to remove defamatory references to freedom-fighters in its history and civic book from the next academic session.
The book published by Goyal Brothers Prakashan and written by DN Kundra has a chapter — Revival of Terrorism — in which Bal Gangadhar Tilak, Lala Lajpat Rai, Bipin Chandra Pal have been referred to as “militants and extremists”, while Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev as “terrorists”.
The court wants these leaders to be called nationalists and revolutionaries.
Additional district judge Inderjeet Singh also restrained ICSE from publishing the book with the wrong information.
While Maharashtra has 118 ICSE schools, Mumbai and Delhi have 60, NCR 30. Over 1 lakh students from Maharashtra opt for ICSE board.
The court’s order came on a petition by Dina Nath Batra, national convenor of Shiksha Bachao Andolan Samiti and others seeking deletion of defamatory passagesin the Std-X history and civics Part-II book.
The petitioners had requested the court to direct ICSE to stop teaching from the books with immediate effect as misleading information could poison the minds of youth.
“We are deeply aggrieved by the defamatory, derogatory, insulting and objectionable language used to refer to freedom-fighters who laid down their lives for our country and the people. It is unfortunate that despite getting freedom in 1947, such objectionable and insulting portions regarding our historical past have not been removed from the course material,” their petition reads.
देश की श्रेष्ठ प्रतिभा,प्रबंधन पर राजनिति के ग्रहण की परिणति दर्शाने का प्रयास !

Sunday 23 January 2011

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जीवन

  • नेता जी सुभाष के जन्म दिवस पर  उन्हें शत शंत नमन ...!! व सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं ! 
    1931 में कांग अध्यक्ष बने नेताजी, गाँधी का नेहरु प्रेम आड़े न आता; 
    तो देश का बंटवारा न होता, कश्मीर समस्या न होती, भ्रष्टाचार न होता, 
    देश समस्याओं का भंडार नहीं, विपुल सम्पदा का भंडार होता
    (स्विस में नहीं)
    -- तिलक संपादक युग दर्पण
  • नेताजी सुभाषचन्द्र बोस (बांग्ला: সুভাষ চন্দ্র বসু शुभाष चॉन्द्रो बोशु) (23 जनवरी 1897 - 18 अगस्त1945 विवादित) जो नेताजी नाम से भी जाने जाते हैं, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय, अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द  का नारा, भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया हैं।
    1944 में अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर से बात करते हुए, महात्मा गाँधी ने नेताजी को देशभक्तों का देशभक्त  कहा था। नेताजी का योगदान और प्रभाव इतना बडा था कि कहा जाता हैं कि यदि उस समय नेताजी भारत में उपस्थित रहते, तो शायद भारत एक संघ राष्ट्र बना रहता और भारत का विभाजन न होता। स्वयं गाँधीजी ने इस बात को स्वीकार किया था। 
    [अनुक्रम 1 जन्म और कौटुंबिक जीवन2 स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश और कार्य3 कारावास4 यूरोप प्रवास5 हरीपुरा कांग्रेस का अध्यक्षप6 कांग्रेस के अध्यक्षपद से इस्तीफा7 फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना8 नजरकैद से पलायन9 नाजी जर्मनी में प्रवास एवं हिटलर से मुलाकात10 पूर्व एशिया में अभियान11 लापता होना और मृत्यु की खबर 11.1 टिप्पणी12 सन्दर्भ13 बाहरी कड़ियाँ,] 
    जन्म और कौटुंबिक जीवन
    नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। कटक शहर के प्रसिद्द वकील जानकीनाथ बोस व कोलकाता के एक कुलीन दत्त परिवार से  प्रभावती की 6 बेटियाँ और 8 बेटे कुल मिलाकर 14 संतानें थी। जानकीनाथ बोस पहले सरकारी वकील बाद में निजी तथा  कटक की महापालिका में लंबे समय तक काम किया व बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे थे। सुभाषचंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे।। 
     स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश और कार्य
    कोलकाता के स्वतंत्रता सेनानी, देशबंधु चित्तरंजन दास के कार्य से प्रेरित होकर, सुभाष दासबाबू के साथ काम करना चाहते थे। इंग्लैंड से भारत वापस आने पर वे सर्वप्रथम मुम्बई गये और मणिभवन में 20 जुलाई1921 को महात्मा गाँधी से मिले। कोलकाता जाकर दासबाबू से मिले उनके साथ काम करने की इच्छा प्रकट की। दासबाबू उन दिनों अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध गाँधीजी के असहयोग आंदोलन का बंगाल में नेतृत्व कर रहे थे। उनके साथ सुभाषबाबू इस आंदोलन में सहभागी हो गए।  1922 में दासबाबू ने कांग्रेस के अंतर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की। विधानसभा के अंदर से अंग्रेज़ सरकार का विरोध करने के लिए,कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी ने लड़कर जीता। स्वयं दासबाबू कोलकाता के महापौर बन गए। उन्होंने सुभाषबाबू को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया। सुभाषबाबू ने अपने कार्यकाल में कोलकाता महापालिका का पूरा ढाँचा और काम करने का ढंग ही बदल डाला। कोलकाता के रास्तों के अंग्रेज़ी नाम बदलकर, उन्हें भारतीय नाम दिए गए। स्वतंत्रता संग्राम में प्राण न्यौछावर करनेवालों के परिवार के सदस्यों को महापालिका में नौकरी मिलने लगी।
    बहुत जल्द ही, सुभाषबाबू देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए। पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ सुभाषबाबू ने कांग्रेस के अंतर्गत युवकों की इंडिपेंडन्स लिग शुरू की। 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया, तब कांग्रेस ने उसे काले झंडे दिखाए। कोलकाता में सुभाषबाबू ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। साइमन कमीशन को उत्तर देने के लिए, कांग्रेस ने भारत का भावी संविधान बनाने का काम 8 सदस्यीय आयोग को सौंपा। पंडित मोतीलाल नेहरू इस आयोग के अध्यक्ष और सुभाषबाबू उसके एक सदस्य थे। इस आयोग ने नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की। 1928 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कोलकाता में हुआ। इस अधिवेशन में सुभाषबाबू ने खाकी गणवेश धारण करके पंडित मोतीलाल नेहरू को सैन्य तरीके से सलामी दी। गाँधीजी उन दिनों पूर्ण स्वराज्य की मांग से सहमत नहीं थे। इस अधिवेशन में उन्होंने अंग्रेज़ सरकार से डोमिनियन स्टेटस माँगने की ठान ली थी। किन्तु  सुभाषबाबू और पंडित जवाहरलाल नेहरू को पूर्ण स्वराजकी मांग से पीछे हटना स्वीकार नहीं था। अंत में यह तय किया गया कि अंग्रेज़ सरकार को डोमिनियन स्टेटस देने के लिए, 1 वर्ष का समय दिया जाए। यदि 1 वर्ष में अंग्रेज़ सरकार ने यह मॉंग पूरी नहीं की, तो कांग्रेस पूर्ण स्वराज की मांग करेगी। अंग्रेज़ सरकार ने यह मांग पूरी नहीं की। इसलिए 1930 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन जब लाहौर में हुआ, तब निश्चित किया गया कि 26 जनवरी का दिन स्वतंत्रता दिन के रूप में मनाया जाएगा।
    26 जनवरी1931 के दिन कोलकाता में राष्ट्रध्वज फैलाकर सुभाषबाबू एक विशाल मोर्चा का नेतृत्व कर रहे थे। तब पुलिस ने उनपर लाठी चलायी और उन्हे घायल कर दिया। जब सुभाषबाबू जेल में थे, तब गाँधीजी ने अंग्रेज सरकार से समझोता किया और सब कैदीयों को रिहा किया गया। किन्तु अंग्रेज सरकार ने सरदार भगत सिंह जैसे क्रांतिकारकों को रिहा करने से माना कर दिया। सुभाषबाबू चाहते थे कि इस विषय पर गाँधीजी अंग्रेज सरकार के साथ किया गया समझोता तोड दे। किन्तु गाँधीजी अपनी ओर से दिया गया वचन तोडने को राजी नहीं थे। भगत सिंह की फॉंसी माफ कराने के लिए, गाँधीजी ने सरकार से बात की। अंग्रेज सरकार अपने स्थान पर अडी रही और भगत सिंह और उनके साथियों को फॉंसी दी गयी। भगत सिंह को न बचा पाने पर, सुभाषबाबू गाँधीजी और कांग्रेस के नीतिओं से बहुत    रुष्ट हो गए। 
     कारावास
    १९३९ में बोस का आल इण्डिया कॉन्ग्रेस सभा में आगमन छाया सौजन्य:टोनी मित्रा
    अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाषबाबू को कुल 11 बार कारावास हुआ। सबसे पहले उन्हें 1921में 6 माह का कारावास हुआ।
    1925 में गोपिनाथ साहा नामक एक क्रांतिकारी कोलकाता के पुलिस अधिक्षक चार्लस टेगार्ट को मारना चाहता था। उसने भूल से अर्नेस्ट डे नामक एक व्यापारी को मार डाला। इसके लिए उसे फॉंसी की सजा दी गयी। गोपिनाथ को फॉंसी होने के बाद सुभाषबाबू जोर से रोये। उन्होने गोपिनाथ का शव मॉंगकर उसका अंतिम  संस्कार किया। इससे अंग्रेज़ सरकार ने यह निष्कर्ष किया कि सुभाषबाबू ज्वलंत क्रांतिकारकों से न केवल ही संबंध रखते हैं, बल्कि वे ही उन क्रांतिकारकों का स्फूर्तीस्थान हैं। इसी बहाने अंग्रेज़ सरकार ने सुभाषबाबू को गिरफतार किया और बिना कोई मुकदमा चलाए, उन्हें अनिश्चित कालखंड के लिए म्यानमार के मंडाले कारागृह में बंदी बनाया।
    5 नवंबर1925 के दिन, देशबंधू चित्तरंजन दास कोलकाता में चल बसें। सुभाषबाबू ने उनकी मृत्यू की सूचना मंडाले कारागृह में रेडियो पर सुनी।
    मंडाले कारागृह में रहते समय सुभाषबाबू का स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया। उन्हें तपेदिक हो गया। परंतू अंग्रेज़ सरकार ने फिर भी उन्हें रिहा करने से मना कर दिया। सरकार ने उन्हें रिहा करने के लिए यह शर्त रखी की वे चिकित्सा के लिए यूरोप चले जाए। किन्तु सरकार ने यह तो स्पष्ट नहीं किया था कि चिकित्सा के बाद वे भारत कब लौट सकते हैं। इसलिए सुभाषबाबू ने यह शर्त स्वीकार नहीं की। अन्त में परिस्थिती इतनी कठिन हो गयी की शायद वे कारावास में ही मर जायेंगे। अंग्रेज़ सरकार यह खतरा भी नहीं उठाना चाहती थी, कि सुभाषबाबू की कारागृह में मृत्यू हो जाए। इसलिए सरकार ने उन्हे रिहा कर दिया। फिर सुभाषबाबू चिकित्सा के लिए डलहौजी चले गए।
    1930 में सुभाषबाबू कारावास में थे। तब उन्हे कोलकाता के महापौर चुना गया। इसलिए सरकार उन्हे रिहा करने पर बाध्य हो गयी।
    1932 में सुभाषबाबू को फिर से कारावास हुआ। इस बार उन्हे अलमोडा जेल में रखा गया। अलमोडा जेल में उनका स्वास्थ्य फिर से बिगड़  गया। वैद्यकीय सलाह पर सुभाषबाबू इस बार चिकित्सा हेतु यूरोप जाने को सहमत हो गए।
     यूरोप प्रवास
    1933 से 1936 तक सुभाषबाबू यूरोप में रहे।
    यूरोप में सुभाषबाबू ने अपने स्वस्थ का ध्यान रखते समय, अपना कार्य जारी रखा। वहाँ वे इटली के नेता मुसोलिनी से मिले, जिन्होंने उन्हें, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सहायता करने का वचन दिया। आयरलैंड के नेता डी वॅलेरा सुभाषबाबू के अच्छे दोस्त बन गए।
    जब सुभाषबाबू यूरोप में थे, तब पंडित जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू का ऑस्ट्रिया में निधन हो गया। सुभाषबाबू ने वहाँ जाकर पंडित जवाहरलाल नेहरू को सांत्वना दिया।
    बाद में सुभाषबाबू यूरोप में विठ्ठल भाई पटेल से मिले। विठ्ठल भाई पटेल के साथ सुभाषबाबू ने पटेल-बोस विश्लेषण प्रसिद्ध किया, जिस में उन दोनों ने गाँधीजी के नेतृत्व की बहुत गहरी निंदा की। बाद में विठ्ठल भाई पटेल बीमार पड गए, तब सुभाषबाबू ने उनकी बहुत सेवा की। किन्तु विठ्ठल भाई पटेल का निधन हो गया।
    विठ्ठल भाई पटेल ने अपनी वसीयत में अपनी करोडों की संपत्ती सुभाषबाबू के नाम कर दी। किन्तु उनके निधन के पश्चात, उनके भाई सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस वसीयत को स्वीकार नहीं किया और उसपर अदालत में मुकदमा चलाया। यह मुकदमा जितकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने वह संपत्ती, गाँधीजी के हरिजन सेवा कार्य को भेट दे दी।
    1934 में सुभाषबाबू को उनके पिता मृत्त्यूशय्या पर होने की सूचना मिली। इसलिए वे हवाई जहाज से कराची होकर कोलकाता लौटे। कराची में उन्हे पता चला की उनके पिता की मृत्त्यू हो चुकी थी। कोलकाता पहुँचते ही, अंग्रेज सरकार ने उन्हे बंदी बना दिया और कई दिन जेल में रखकर, वापस यूरोप भेज दिया।
     हरीपुरा कांग्रेस का अध्यक्षपद
    नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, महात्मा गाँधी के साथ हरिपुरा मे सन 1938
    1938 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हरिपुरा में होने का तय हुआ था। इस अधिवेशन से पहले गाँधीजी ने कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए सुभाषबाबू को चुना। यह कांग्रेस का 51वा अधिवेशन था। इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष सुभाषबाबू का स्वागत 51 बैलों ने खींचे हुए रथ में किया गया।
    इस अधिवेशन में सुभाषबाबू का अध्यक्षीय भाषण बहुत ही प्रभावी हुआ। किसी भी भारतीय राजकीय व्यक्ती ने शायद ही इतना प्रभावी भाषण कभी दिया हो।
    अपने अध्यक्षपद के कार्यकाल में सुभाषबाबू ने योजना आयोग की स्थापना की। पंडित जवाहरलाल नेहरू इस के अध्यक्ष थे। सुभाषबाबू ने बेंगलोर में विख्यात वैज्ञानिक सर विश्वेश्वरैय्या की अध्यक्षता में एक विज्ञान परिषद भी ली।
    1937 में जापान ने चीन पर आक्रमण किया। सुभाषबाबू की अध्यक्षता में कांग्रेस ने चिनी जनता की सहायता के लिए, डॉ द्वारकानाथ कोटणीस के नेतृत्व में वैद्यकीय पथक भेजने का निर्णय लिया। आगे चलकर जब सुभाषबाबू ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जापान से सहयोग किया, तब कई लोग उन्हे जापान के हस्तक और फासिस्ट कहने लगे। किन्तु इस घटना से यह सिद्ध होता हैं कि सुभाषबाबू न तो जापान के हस्तक थे, न ही वे फासिस्ट विचारधारा से सहमत थे।
     कांग्रेस के अध्यक्षपद से त्यागपत्र
    1938 में गाँधीजी ने कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए सुभाषबाबू को चुना तो था, किन्तु गाँधीजी को सुभाषबाबू की कार्यपद्धती पसंद नहीं आयी। इसी बीच युरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल छा गए थे। सुभाषबाबू चाहते थे कि इंग्लैंड की इस कठिनाई का लाभ उठाकर, भारत का स्वतंत्रता संग्राम अधिक तीव्र किया जाए। उन्होने अपने अध्यक्षपद की कार्यकाल में इस तरफ कदम उठाना भी शुरू कर दिया था। गाँधीजी इस विचारधारा से सहमत नहीं थे।
    1939 में जब नया कांग्रेस अध्यक्ष चुनने का वक्त आया, तब सुभाषबाबू चाहते थे कि कोई ऐसी व्यक्ती अध्यक्ष बन जाए, जो इस मामले में किसी दबाव के सामने न झुके। ऐसी कोई दुसरी व्यक्ती सामने न आने पर, सुभाषबाबू ने खुद कांग्रेस अध्यक्ष बने रहना चाहा। किन्तु गाँधीजी अब उन्हे अध्यक्षपद से हटाना चाहते थे। गाँधीजीने अध्यक्षपद के लिए पट्टाभी सितारमैय्या को चुना। कविवर्य रविंद्रनाथ ठाकूर ने गाँधीजी को पत्र लिखकर सुभाषबाबू को ही अध्यक्ष बनाने की विनंती की। प्रफुल्लचंद्र राय और मेघनाद सहा जैसे वैज्ञानिक भी सुभाषबाबू को फिर से अध्यक्ष के रूप में देखना चाहतें थे। किन्तु गाँधीजी ने इस मामले में किसी की बात नहीं मानी। कोई समझोता न हो पाने पर, बहुत वर्षों के बाद, कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए चुनाव लडा गया।
    सब समझते थे कि जब महात्मा गाँधी ने पट्टाभी सितारमैय्या का साथ दिया हैं, तब वे चुनाव आसानी से जीत जाएंगे। किन्तु वास्तव में, सुभाषबाबू को चुनाव में 1580 मत मिल गए और पट्टाभी सितारमैय्या को 1377 मत मिलें। गाँधीजी के विरोध के बाद भी सुभाषबाबू 203 मतों से यह चुनाव जीत गए।
    किन्तु चुनाव के निकाल के साथ बात समाप्त  नहीं हुई। गाँधीजी ने पट्टाभी सितारमैय्या की हार को अपनी हार बताकर, अपने साथीयों से कह दिया कि यदि वें सुभाषबाबू के नीतिओं से सहमत नहीं हैं, तो वें कांग्रेस से हट सकतें हैं। इसके बाद कांग्रेस कार्यकारिणी के 14 में से 12 सदस्यों ने त्यागपत्र दे दिया। पंडित जवाहरलाल नेहरू तटस्थ रहें और अकेले शरदबाबू सुभाषबाबू के साथ बनें रहें।
    1939 का वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन त्रिपुरी में हुआ। इस अधिवेशन के समय सुभाषबाबू तेज ज्वर से इतने रुग्न पड गए थे, कि उन्हे स्ट्रेचर पर लेटकर अधिवेशन में आना पडा। गाँधीजी इस अधिवेशन में उपस्थित नहीं रहे। गाँधीजी के साथीयों ने सुभाषबाबू से बिल्कुल सहकार्य नहीं दिया।
    अधिवेशन के बाद सुभाषबाबू ने समझोते के लिए बहुत कोशिश की। किन्तु गाँधीजी और उनके साथीयों ने उनकी एक न मानी। परिस्थिती ऐसी बन गयी कि सुभाषबाबू कुछ काम ही न कर पाए। अन्त में तंग आकर, 29 अप्रैल1939 को सुभाषबाबू ने कांग्रेस अध्यक्षपद से त्यागपत्र दे दिया।
     फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना
    3 मई1939 के दिन, सुभाषबाबू नें कांग्रेस के अंतर्गत फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। कुछ दिन बाद, सुभाषबाबू को कांग्रेस से निकाला गया। बाद में फॉरवर्ड ब्लॉक अपने आप एक स्वतंत्र पार्टी बन गयी।
    द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने से पहले से ही, फॉरवर्ड ब्लॉक ने स्वतंत्रता संग्राम अधिक तीव्र करने के लिए, जनजागृती शुरू की। इसलिए अंग्रेज सरकार ने सुभाषबाबू सहित फॉरवर्ड ब्लॉक के सभी मुख्य नेताओ को कैद कर दिया। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सुभाषबाबू जेल में निष्क्रिय रहना नहीं चाहते थे। सरकार को उन्हे रिहा करने पर बाध्य करने के लिए सुभाषबाबू ने जेल में आमरण उपोषण शुरू कर दिया। तब सरकार ने उन्हे रिहा कर दिया। किन्तु अंग्रेज सरकार यह नहीं चाहती थी, कि सुभाषबाबू युद्ध काल में मुक्त रहें। इसलिए सरकार ने उन्हे उनके ही घर में नजरकैद कर के रखा।
     नजरकैद से पलायन
    नजरकैद से निकलने के लिए सुभाषबाबू ने एक योजना बनायी। 16 जनवरी1941 को वे पुलिस को चकमा देने के लिये एक पठान मोहम्मद जियाउद्दीन का भेष धरकर, अपने घर से भाग निकले। शरदबाबू के बडे बेटे शिशिर ने उन्हे अपनी गाडी से कोलकाता से दूर, गोमोह तक पहुँचाया। गोमोह रेल्वे स्टेशन से फ्रंटियर मेल पकडकर वे पेशावर पहुँचे। पेशावर में उन्हे फॉरवर्ड ब्लॉक के एक सहकारी, मियां अकबर शाह मिले। मियां अकबर शाह ने उनकी भेंट, कीर्ती किसान पार्टी के भगतराम तलवार से कर दी। भगतराम तलवार के साथ में, सुभाषबाबू पेशावर से अफ़्ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल की ओर निकल पडे। इस सफर में भगतराम तलवार, रहमतखान नाम के पठान बने थे और सुभाषबाबू उनके गूंगे-बहरे चाचा बने थे। पहाडियों में पैदल चलते हुए उन्होने यह यात्रा कार्य पूरा किया।
    काबुल में सुभाषबाबू 2 माह तक उत्तमचंद मल्होत्रा नामक एक भारतीय व्यापारी के घर में रहे। वहाँ उन्होने पहले रूसी दूतावास में प्रवेश पाना चाहा। इस में असफल रहने पर, उन्होने जर्मन और इटालियन दूतावासों में प्रवेश पाने का प्रयास किया। इटालियन दूतावास में उनका प्रयास सफल रहा। जर्मन और इटालियन दूतावासों ने उनकी सहायता की। अन्त में ओर्लांदो मात्सुता नामक इटालियन व्यक्ति बनकर, सुभाषबाबू काबुल से रेल्वे से निकलकर रूस की राजधानी मॉस्को होकर जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुँचे। 
    नाजी जर्मनी में प्रवास एवं हिटलर से मुलाकात
    बर्लिन में सुभाषबाबू सर्वप्रथम रिबेनट्रोप जैसे जर्मनी के अन्य नेताओ से मिले। उन्होने जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संगठन और आजाद हिंद रेडिओ की स्थापना की। इसी बीच सुभाषबाबू, नेताजी नाम से जाने जाने लगे। जर्मन सरकार के एक मंत्री एडॅम फॉन ट्रॉट सुभाषबाबू के अच्छे दोस्त बन गए।
    अंतत: 29 मई1942 के दिन, सुभाषबाबू जर्मनी के सर्वोच्च नेता एडॉल्फ हिटलर से मिले। किन्तु हिटलर को भारत के विषय में विशेष रूची नहीं थी। उन्होने सुभाषबाबू को सहायता का कोई स्पष्ट वचन नहीं दिया।
    कई वर्ष पूर्व हिटलर ने माईन काम्फ नामक अपना आत्मचरित्र लिखा था। इस पुस्तक में उन्होने भारत और भारतीय लोगों की बुराई की थी। इस विषय पर सुभाषबाबू ने हिटलर से अपनी नाराजी व्यक्त की। हिटलर ने अपने किये पर क्षमा माँगी और माईन काम्फ की अगली आवृत्ती से वह परिच्छेद निकालने का वचन दिया।
    अंत में, सुभाषबाबू को पता चला कि हिटलर और जर्मनी से उन्हे कुछ और नहीं मिलने वाला हैं। इसलिए 8 मार्च1943 के दिन, जर्मनी के कील बंदर में, वे अपने साथी अबिद हसन सफरानी के साथ, एक जर्मन पनदुब्बी में बैठकर, पूर्व एशिया की तरफ निकल गए। यह जर्मन पनदुब्बी उन्हे हिंद महासागर में मादागास्कर के किनारे तक लेकर आई। वहाँ वे दोनो खूँखार समुद्र में से तैरकर जापानी पनदुब्बी तक पहुँच गए। द्वितीय विश्वयुद्ध के काल में, किसी भी दो देशों की नौसेनाओ की पनदुब्बीयों के बीच, नागरिको की यह एकमात्र बदली हुई थी। यह जापानी पनदुब्बी उन्हे इंडोनेशिया के पादांग बंदर तक लेकर आई।
     पूर्व एशिया में अभियान
    स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार
    पूर्व एशिया पहुँचकर सुभाषबाबू ने सर्वप्रथम, वयोवृद्ध क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से भारतीय स्वतंत्रता परिषद का नेतृत्व सँभाला। सिंगापुर के फरेर पार्क में रासबिहारी बोस ने भारतीय स्वतंत्रता परिषद का नेतृत्व सुभाषबाबू को सौंप दिया।
    जापान के प्रधानमंत्री जनरल हिदेकी तोजो ने, नेताजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर, उन्हे सहकार्य करने का आश्वासन दिया। कई दिन पश्चात, नेताजी ने जापान की संसद डायट के सामने भाषण किया।
    21 अक्तूबर1943 के दिन, नेताजी ने सिंगापुर में अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद (स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार) की स्थापना की। वे स्वयं इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री बने। इस सरकार को कुल 9 देशों ने मान्यता दी। नेताजी आज़ाद हिन्द फौज के प्रधान सेनापति भी बन गए।
    आज़ाद हिन्द फौज में जापानी सेना ने अंग्रेजों की फौज से पकडे हुए भारतीय युद्धबंदियों को भर्ती किया गया। आज़ाद हिन्द फ़ौज में औरतो के लिए झाँसी की रानी रेजिमेंट भी बनायी गयी।
    पूर्व एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण करके वहाँ स्थायिक भारतीय लोगों से आज़ाद हिन्द फौज में भरती होने का और उसे आर्थिक सहायता करने का आवाहन किया। उन्होने अपने आवाहन में संदेश दिया तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूँगा
    द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच आज़ाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया। अपनी फौज को प्रेरित करने के लिए नेताजी ने चलो दिल्ली  का नारा दिया। दोनो फौजो ने अंग्रेजों से अंदमान और निकोबार द्वीप जीत लिए। यह द्वीप अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद के अनुशासन में रहें। नेताजी ने इन द्वीपों का शहीद और स्वराज द्वीप  ऐसा नामकरण किया। दोनो फौजो ने मिलकर इंफाल और कोहिमा पर आक्रमण किया। किन्तु बाद में अंग्रेजों का पलडा भारी पडा और दोनो फौजो को पिछे हटना पडा।
    जब आज़ाद हिन्द फौज पिछे हट रही थी, तब जापानी सेना ने नेताजी के भाग जाने की व्यवस्था की। परंतु नेताजी ने झाँसी की रानी रेजिमेंट की लडकियों के साथ सैकडो मिल चलते जाना पसंद किया। इस प्रकार नेताजी ने सच्चे नेतृत्व का एक आदर्श ही बनाकर रखा।
    6 जुलाई1944 को आजाद हिंद रेडिओ पर अपने भाषण के माध्यम से गाँधीजी से बात करते हुए, नेताजी ने जापान से सहायता लेने का अपना कारण और अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद तथा आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्येश्य के बारे में बताया।अपनी जंग के लिए उनका आशिर्वाद माँगा । ।
     लापता होना और मृत्यु की खबर
    द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद, नेताजी को नया रास्ता ढूँढना आवश्यक था। उन्होने रूस से सहायता माँगने का निश्चय किया था।
    18 अगस्त1945 को नेताजी हवाई जहाज से मांचुरिया की तरफ जा रहे थे। इस यात्रा के बीच वे लापता हो गए। इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखाई नहीं दिये।
    23 अगस्त1945 को जापान की दोमेई खबर संस्था ने विश्व को सूचना दी, कि 18 अगस्त के दिन, नेताजी का हवाई जहाज ताइवान की भूमि पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उस दुर्घटना में बुरी तरह से घायल होकर नेताजी ने अस्पताल में अंतिम साँस ले ली थी।
    दुर्घटनाग्रस्त हवाई जहाज में नेताजी के साथ उनके सहकारी कर्नल हबिबूर रहमान थे। उन्होने नेताजी को बचाने का निश्च्हय किया, किन्तु वे सफल नहीं रहे। फिर नेताजी की अस्थियाँ जापान की राजधानी तोकियो में रेनकोजी नामक बौद्ध मंदिर में रखी गयी।
    स्वतंत्रता के पश्चात, भारत सरकार ने इस घटना की जाँच करने के लिए, 1956 और 1977 में 2 बार एक आयोग को नियुक्त किया। दोनो बार यह परिणाम निकला की नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही मारे गये थे। किन्तु जिस ताइवान की भूमि पर यह दुर्घटना होने की सूचना थी, उस ताइवान देश की सरकार से तो, इन दोनो आयोगो ने बात ही नहीं की।
    1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया। 2005 में ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बता दिया कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था। 2005 में मुखर्जी आयोग ने भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिस में उन्होने कहा, कि नेताजी की मृत्यु उस विमान दुर्घटना में होने का कोई प्रमाण नहीं हैं। किन्तु भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया।
    18 अगस्त1945 के दिन नेताजी कहाँ लापता हो गए और उनका आगे क्या हुआ, यह भारत के इतिहास का सबसे बडा अनुत्तरित रहस्य बन गया हैं।
    देश के अलग-अलग भागों में आज भी नेताजी को देखने और मिलने का दावा करने वाले लोगों की कमी नहीं है। फैजाबाद के गुमनामी बाबा से लेकर छत्तीसगढ़ के रायगढ़ तक में नेताजी के होने को लेकर कई दावे हुये हैं किन्तु इनमें से सभी की प्रामाणिकता संदिग्ध है। छत्तीसगढ़ में तो सुभाष चंद्र बोस के होने को लेकर मामला राज्य सरकार तक गया। हालांकि राज्य सरकार ने इसे हस्तक्षेप योग्य नहीं मानते हुये मामले की फाइल बंद कर दी। 
    टिप्पणी
    • कोई भी व्यक्ति कष्ट और बलिदान के माध्यम असफल नहीं हो सकता, यदि वह पृथ्वी पर कोई चीज गंवाता भी है तो अमरत्व का वारिस बन कर काफी कुछ प्राप्त कर लेगा।...सुभाष चंद्र बोस
    • एक मामले में अंग्रेज बहुत भयभीत थे। सुभाषचंद्र बोस, जो उनके सबसे अधिक दृढ़ संकल्प और संसाधन वाले भारतीय शत्रु थे, ने कूच कर दिया था।...क्रिस्टॉफर बेली और टिम हार्पर 
    • सन्दर्भ

देश की श्रेष्ठ प्रतिभा,प्रबंधन पर राजनिति के ग्रहण की परिणति दर्शाने का प्रयास !